| अडला हरी गाढवाचे पाय धरी | |
| एखाद्या बुद्धीमान माणसाला देखील अडचणीच्या वेळी दुर्जन माणसाची विनवणी करावी लागते. | |
| अतिशहाणा त्याचा बैल रिकामा | |
| जो मनुष्य फार शहाणपणा करायला लागतो त्याचे मुळीच काम होत नाही. | |
| अंगावरचे लेणे, जन्मभर देणे | |
| दागिन्याकरिता कर्ज करून ठेवायचे आणि ते जन्मभर फेरीत बसायचे. | |
| असतील शिते तर जमतील भूते | |
| एखाद्या माणसाकडून फायदा होणार असला की त्याच्याभोवती माणसे गोळा होतात. | |
| असंगाशी संग आणि प्राणाशी गाठ | |
| दुर्जन माणसाची संगत केल्यास प्रसंगी जीवालाही धोका निर्माण होतो. | |
| अंगाले सुटली खाज, हाताला नाही लाज | |
| गरजवंताला अक्कल नसते. | |
| अन्नछत्री जेवणे, वर मिरपूड मागणे | |
| दुसऱ्याकडून आवश्यक ती धर्मार्थ मदत घ्यायची त्याशिवाय आणखीनही काही गोष्टी मागून मिजास दाखवणे. | |
| अंत काळापेक्षा मध्यान्हकाळ कठीण | |
| मरण्याच्या वेदनांपेक्षा भुकेच्या वेदना अधिक दुःखदायक असतात. | |
| अंधारात केले, पण उजेडात आले | |
| कितीही गुप्तपणे एखादी गोष्ट केली तरी ती काही दिवसांनी उजेडात येतेच. | |
| अक्कल नाही काडीची नाव सहस्त्रबुद्धे | |
| नाव मोठे लक्षण खोटे | |
| अघटित वार्ता आणि कोल्हे गेले तीर्था | |
| अशक्यकोटीतील गोष्टी | |
| अती झाले अन आसू आले | |
| एखाद्या गोष्टीचा अतिरेक झाला की ती दुःखदायी ठरते | |
| अतिपरिचयात अवज्ञा | |
| जास्त जवळीकता झाल्यास अपमान होऊ शकतो. | |
| अती झाले गावचे अन पोट फुगले देवाचे | |
| कृत्य एकाचे त्रास मात्र दुसऱ्यालाच | |
| अन्नाचा येते वास, कोरीचा घेते घास | |
| अन्न न खाणे, पण त्यात मन असणे. | |
| अपापाचा माल गपापा | |
| लोकांचा तळतळाट करून मिळवलेले धन झपाट्याने नष्ट होते. | |
| अर्थी दान महापुण्य | |
| गरजू माणसाला दान दिल्यामुळे पुण्य मिळते. | |
| आईची माया अन् पोर जाईल वाया | |
| फार लाड केले तर मुले बिघडतात. | |
| आधी पोटोबा मग विठोबा | |
| प्रथम पोटाची सोय पाहणे, नंतर देव – धर्म करणे. | |
| आपलेच दात आपलेच ओठ | |
| आपल्याच माणसाने चूक केल्यास अडचणीची परिस्थिती निर्माण होते. | |
| आयत्या बिळावर नागोबा | |
| एखाद्याने स्वतःकरिता केलेल्या गोष्टीचा आयता फायदा घेण्याची वृत्ती असणे. | |
| आंधळा मागतो एक डोळा देव देतो दोन डोळे | |
| अपेक्षेपेक्षा जास्त फायदा होणे | |
| आपण हसे लोळायला, शेंबूड आपल्या नाकाला | |
| ज्या दोषाबद्दल आपण दुसर्याला हसतो, तो दोष आपल्या अंगी असणे | |
| आधीच उल्हास त्यात फाल्गुन मास | |
| मुळातच आळशी असणाऱ्या माणसांच्या बाबतीत त्यांच्या आळशी वृत्तीला पोषक, अवस्था निर्माण होणे. | |
| आंधळं दळतं कुत्रं पिठ खातं | |
| एकाने काम करावे दुसऱ्याने त्याचा फायदा घ्यावा. | |
| आंधळ्या बहिर्यांची गाठ | |
| एकमेकांना मदत करण्यास असमर्थ असणार्या दोन माणसांची गाठ पडणे. | |
| अगं अगं म्हशी, मला कुठे नेशी ? | |
| चूक स्वतःच करून ती मान्य करावयाची नाही, उलटी ती दुसऱ्याच्या माथी मारून मारून मोकळे व्हायचे. | |
| अडली गाय फटके खाय | |
| एखादा माणूस अडचणीत सापडला, की त्याला हैराण केले जाते. | |
| आपला हात जगन्नाथ | |
| आपली उन्नती आपल्या कर्तृत्वावर अवलंबून असते. | |
| असेल त्या दिवशी दिवाळी नसेल त्यादिवशी शिमगा | |
| अनुकूलता असेल तेव्हा चैन करणे आणि नसेल तेव्हा उपवास करण्याची पाळी येणे. | |
| अंगठा सुजला म्हणून डोंगराएवढा होईल का ? | |
| कोणत्याही गोष्टीला ठराविक मर्यादा असते. | |
| अवशी खाई तूप आणि सकाळी पाही रूप | |
| अतिशय उतावळेपणाची कृती. | |
| अती खाणे मसणात जाणे | |
| अति खाणे नुकसानकारक असते. | |
| अठरा नखी खेटरे राखी, वीस नखी घर राखी | |
| मांजर घराचे तर कुत्रे दाराचे रक्षण करते. | |
| अवचित पडे, नि दंडवत घडे | |
| स्वतःची चूक झाकण्याचा प्रयत्न करणे. | |
| अवसबाई इकडे पुनवबाई तिकडे | |
| एकमेकांच्या अगदी विरुद्ध बाजू. | |
| अंथरूण पाहून पाय पसरावे | |
| आपली ऐपत, वकूब पाहून वागावे. | |
| अंगापेक्षा बोंगा मोठा | |
| मूळ गोष्टींपेक्षा अनुषांगिक गोष्टींचा बडेजाव मोठा असणे. | |
| आपला तो बाब्या दुसर्याचे ते कारटे | |
| स्वतःच्या बाबतीत असणारे चांगले विचार दुसऱ्याच्या बाबतीत न ठेवण्याची वृत्ती असणे. | |
| आपली पाठ आपणास दिसत नाही | |
| स्वतःचे दोष स्वतःला कधीच दिसत नाहीत. | |
| आजा मेला नातू झाला | |
| एखादे नुकसान झाले असता, त्याच वेळी फायद्याची गोष्ट घडणे. | |
| आत्याबाईला जर मिशा असत्या तर | |
| नेहमी एखाद्या कामात जर तर या शक्यतांचा विचार करणे. | |
| आपल्याच पोळीवर तूप ओढणे | |
| फक्त स्वतःचाच तेवढा फायदा साधून घेणे. | |
| आलिया भोगासी असावे सादर | |
| तक्रार व कुरकुर निर्माण झालेली परिस्थिती स्वीकारणे. | |
| आवळा देऊन कोहळा काढणे | |
| आपला स्वार्थ साधण्यासाठी एखाद्या व्यक्तीला लहान वस्तू देऊन मोठी वस्तू मिळविणे. | |
| आपण मेल्यावाचून स्वर्ग दिसत नाही | |
| अनुभवाशिवाय शहाणपण नसते. | |
| आपले नाक कापून दुसऱ्यास अपशकुन | |
| दुसऱ्याचे नुकसान करण्यासाठी प्रथम स्वतःचे नुकसान करून घेणे. | |
| आधीच तारे, त्यात गेले वारे | |
| विचित्र व्यक्तीच्या वर्तनात भर पडणारी घटना घडणे. | |
| आधीच मर्कट तशातही मद्य प्याला | |
| आधीच करामती व त्यात मद्य प्राशन केल्याने अधिकच विचित्र परिस्थिती निर्माण होते. | |
| अडक्याची अंबा आणि गोंधळाला रुपये बारा | |
| मुख्य गोष्टीपेक्षा अनुषंगिक गोष्टींचाच खर्च जास्त असणे. | |
| आग रामेश्वरी, बंब सोमेश्वर | |
| रोग एकीकडे, उपाय भलतीकडे. | |
| आयजीच्या जीवावर बायजी उदार | |
| दुसऱ्याचा पैसा खर्च करून औदार्य दाखवणे. | |
| आग खाईल तो कोळसे ओकेल | |
| जशी करणी तसे फळ | |
| आठ पूरभय्ये नऊ चौबे | |
| खूप निर्बुद्ध लोकांपेक्षा चार बुद्धिमान पुरेसे. | |
| आधणातले रडतात व सुपातले हसतात | |
| संंकटात असतानाही दुसर्याचे दुःख पाहून हसू येते. | |
| इन मीन साडेतीन | |
| एखाद्या करण्यासाठी अगदी कमीत कमी लोक हजर असणे. | |
| इच्छिलेले जर घडते तर भिक्षूकही राजे होते | |
| इच्छेप्रमाणे सारे घडले तर सारेच लोक धनवान झाले असते. | |
| इच्छा परा ते येई घरा | |
| आपण जे दुसऱ्याच्या बाबतीत चिंतितो तेच आपल्या वाट्याला येणे. | |
| इकडे आड तिकडे विहीर | |
| दोन्ही बाजूंनी सारखीच अडचणीची स्थिती निर्माण होणे. | |
| ईश्वर जन्मास घालतो त्याचे पदरी शेर बांधतो | |
| जन्मास आलेल्याचे पालन पोषण होतेच. | |
| उथळ पाण्याला खळखळाट फार | |
| अंगी थोडासा गुण असणारा माणूस जास्त बढाई मारतो. | |
| उंदराला मांजर साक्ष | |
| ज्याचे एखाद्या गोष्टीत हित आहे त्याला त्या गोष्टीबाबत विचारणे व्यर्थ असते किंवा एखादे वाईट कृत्य करत असताना एकमेकांना दुजोरा देणे. | |
| उचलली जीभ लावली टाळ्याला | |
| दुष्परिणामाचा विचार न करता बोलणे | |
| उतावळा नवरा गुडघ्याला बाशिंग | |
| अतिशय उतावीळपणाचे वर्तन करणे. | |
| उठता लाथ बसता बुक्की | |
| प्रत्येक कृत्याबद्दल आदर घडविण्यासाठी पुन्हापुन्हा शिक्षा करणे. | |
| उडत्या पाखराची पिसे मोजणे | |
| अगदी सहज चालता – चालता एखाद्या अवघड गोष्टीची परीक्षा करणे. | |
| उतावळी बावरी (नवरी) म्हातार्याची नवरी | |
| अति उतावळेपणा नुकसान कारक असतो. | |
| उद्योगाचे घरी रिद्धी – सिद्धी पाणी भरी | |
| जेथे उद्योग असतो तेथे संपत्ती येते. | |
| उंबर पिकले आणि नडगीचे (अस्वलाचे) डोळे आले | |
| फायद्याची वेळी येणे; पण लाभ न घेता येणे. | |
| ऊराचे खुराडे आणि चुलीचे तुणतुणे | |
| अतिशय हलाखीची स्थिती. | |
| उंदीर गेला लुटी आणल्या दोन मुठी | |
| प्रत्येक मनुष्य आपल्या क्षमतेनुसार काम करतो. | |
| उकराल माती तर पिकतील मोती | |
| मशागत केल्यास चांगले पीक येते. | |
| उखळात डोके घातल्यावर मुसळाची भीती कशाला? | |
| एखादे कार्य अंगावर घेतल्यानंतर त्यासाठी पडणाऱ्या श्रमांचा विचार करायचा नसतो. | |
| उचल पत्रावळी, म्हणे जेवणारे किती? | |
| जे काम करायचे ते सोडून देऊन भलत्याच चौकशा करणे. | |
| उडाला तर कावळा, बुडाला तर बेडूक | |
| एखाद्या गोष्टीची परीक्षा होण्यासाठी काही काळ वाट पहावी लागते. | |
| उधारीची पोते, सव्वा हात रिते | |
| उधारीने घेतलेला माल नेहमीच कमी भरतो. | |
| उभारले राजवाडे तेथे आले मनकवडे | |
| श्रीमंती आली की, तिच्या मागोमाग हाजी हाजी करणारेही येतातच. | |
| उभ्याने यावे आणि ओणव्याने जावे | |
| येते वेळी ताठ मानेने यावे आणि जातेवेळी खाली मान घालून जाणे. | |
| उसाच्या पोटी कापूस | |
| सद्गुणी माणसाच्या पोटी दुर्गुणी संपत संतती. | |
| ऊस गोड लागला म्हणून मुळासगट खाऊ नये | |
| कोणत्याही चांगल्या गोष्टीचा किंवा चांगुलपणाचा प्रमाणाबाहेर फायदा घेऊ नये. | |
| एका माळेचे मणी | |
| सगळीच माणसे सारख्याच स्वभावाची असणे. | |
| एका हाताने टाळी वाजत नाही | |
| दोघांच्या भांडणात पूर्णपणे एकट्यालाच दोष देता येत नाही. | |
| एक ना धड भाराभर चिंध्या | |
| एकाच वेळी अनेक कामे करायला घेतल्याने सर्वच कामे अर्धवट होण्याची अवस्था. | |
| एकावे जनाचे करावे मनाचे | |
| लोकांचे ऐकून घ्यावे आणि आपल्या मनाला जे योग्य वाटेल ते करावे. | |
| एकाची जळते दाढी दुसरा त्यावर पेटवू पाहतो विडी | |
| दुसऱ्याच्या अडचणींचा विचार न करता त्यातही स्वतःचा फायदा पाहण्याची दृष्टी ठेवणे. | |
| एकाने गाय मारली म्हणून दुसऱ्याने वासरु मारु नये | |
| दुसऱ्याने केलेल्या मोठ्या वाईट गोष्टींकडे बोट दाखवून आपण केलेल्या वाईट गोष्टीचे समर्थन करू नये. | |
| एका पिसाने मोर होत नाही | |
| थोड्याश्या यशाने हुरळून जाणे | |
| एका खांबावर द्वारका | |
| एकाच व्यक्तीवर सर्व जबाबदाऱ्या असणे. | |
| एक कोल्हा सतरा ठिकाणी व्याला | |
| एका व्यक्तीपासून अनेक ठिकाणी उपद्रव होणे. | |
| एका कानावर पगडी, घरी बाईल उघडी | |
| बाहेर बडेजाव पण घरी दारिद्र्य | |
| एका मान्यात दोन तलवारी राहात नाहीत | |
| दोन तेजस्वी माणसे गुण्या-गोविंदाने राहू शकत नाहीत. | |
| ऐंशी तेथे पंचाऐंशी | |
| अतिशय उधळेपणाची कृती. | |
| ऐरावत रत्न थोर, त्यासी अंकुशाचा मार | |
| मोठ्या व्यक्तीला यातनाही तेवढ्यात असतात. | |
| ओळखीचा चोर जीवे न सोडली | |
| ओळखीचा शत्रू हा अनोळखी शत्रूपेक्षा भयंकर असतो. | |
| ओढ फुटो (तुटो) किंवा खोकाळ फुटो/ शेंडी तुटो की तारंबी तुटो | |
| कोणत्याही परिस्थितीत काम तडीस नेणे. | |
| ओझे उचलू तर म्हणे बाजीराव कोठे? | |
| सांगितलेले काम सोडून नुसत्या चौकशा करणे. | |
| औटघटकेचे राज्य | |
| अल्पकाळ टिकणारी गोष्ट. | |
| करावे तसे भरावे | |
| जशी कृती केली असेल त्याप्रमाणे फळ मिळणे. | |
| कर नाही त्याला डर कशाला ? | |
| ज्याने काही गुन्हा किंवा वाईट गोष्ट केली नाही, त्याने शिक्षा होण्याचे भय कशाला बाळगायचे ? | |
| करीन ते पूर्व | |
| मी करेन ते योग्य, मी म्हणेन ते बरोबर अशा रीतीने वागणे. | |
| करवतीची धार पुढे सरली तरी कापते, मागे सरली तरी कापते | |
| काही गोष्टी केल्या तरी नुकसान होते नाही केल्या तरी नुकसान होते. | |
| करुन करुन भागला, देवध्यानी लागला | |
| भरपूर वाईट कामे करून शेवटी देवपुजेला लागणे. | |
| कणगीत दाणा तर भिल उताणा | |
| गरजेपुरते जवळ असले, कि लोक काम करत नाहीत किंवा कोणाची पर्वा करत नाहीत. | |
| कधी तुपाशी तर कधी उपाशी | |
| सांसारिक स्थिती नेहमी सारखी राहत नाही. | |
| कशात-काय-अन-फाटक्यात-पाय | |
| वाईटात आणखी वाईट घडणे | |
| काठी मारल्याने पाणी दुभंगत नाही | |
| रक्ताचे नाते मोडू तोडू म्हणता तुटत नाही. | |
| काडीचोर तो माडीचोर | |
| एखाद्या माणसाने क्षुल्लक अपराध केला असेल तर त्याचा घडलेल्या एखाद्या मोठ्या अपराधाची संबंध जोडणे | |
| काजव्याच्या उजळ त्याच्या अंगाभोवती | |
| गोष्टींचा प्रभाव तेवढ्यापुरताच असतो. | |
| का ग बाई रोड (तर म्हणे) गावाची ओढ | |
| निरर्थक गोष्टींची काळजी करणे. | |
| कानात बुगडी, गावात फुगडी | |
| आपल्या जवळच्या थोड्याशा संपत्तीचे मोठे प्रदर्शन करणे. | |
| काल महिला आणि आज पितर झाला | |
| अतिशय उतावळेपणाची वृत्ती | |
| काकडीची चोरी फाशीची शिक्षा | |
| अपराध खूप लहान; पण त्याला दिली गेलेली शिक्षा मात्र खूप मोठी असणे. | |
| काडीची सत्ता आणि लाखाची मत्ता बरोबर होत नाही | |
| जे काम भरपूर पैसा आणि होत नाही, ते थोड्याश्या अधिकाराने होते, संपत्तीपेक्षा सत्ता महत्त्वाची ठरते. | |
| कावीळ झालेल्यास सर्व पिवळे दिसते | |
| पूर्वग्रहदूषित दृष्टी असणे. | |
| मल्हारी माहात्म्य | |
| नको तिथे नको ती गोष्ट करणे. | |
| काना मागुन आली आणि तिखट झाली | |
| श्रेष्ठ पेक्षा कनिष्ठ माणसाने वरचढ ठरणे. | |
| कामापुरता मामा | |
| आपले काम करून घेईपर्यंत गोड गोड बोलणे. | |
| कावळा बसला आणि फांदी तुटली | |
| परस्परांशी कारण संबंध नसताना योगायोगाने दोन गोष्टी एकाच वेळी घडणे | |
| काखेत कळसा गावाला वळसा | |
| जवळच असलेली वस्तू शोधण्यास दूर जाणे. | |
| काप गेले नी भोके राहिली | |
| वैभव गेली अन फक्त त्याच्या खुणा राहिल्या | |
| कावळ्याच्या शापाने गाय मरत नाही | |
| शूद्र माणसाने केलेल्या दोषारोपांने थोरांचे नुकसान होत नसते. | |
| काळ आला, पण वेळ आली नव्हती | |
| नाश होण्याची वेळ आली असताना थोडक्यात बचावणे. | |
| कांदा पडला पेवात, पिसा हिंडे गावात | |
| चुकीच्या मार्गाने शोध घेण्याचा मूर्खपणा करणे. | |
| कुंभारणीच्या घरातला किडा कुंभारणीचा | |
| दुसऱ्याच्या स्वाधीन झालेला माणूस आपली मते विसरतो; आपल्या ताब्यात आलेल्या वस्तूवर आपलाच हक्क प्रस्थापित करणे. | |
| कुत्र्याची शेपूट नळीत घातले तरी वाकडे | |
| मूळचा स्वभाव बदलत नाही. | |
| कुडी तशी फोडी | |
| देहा प्रमाणे आहार किंवा कुवतीनुसार मिळणे. | |
| कुऱ्हाडीचा दांडा गोतास काळ | |
| स्वार्थासाठी केवळ दुष्ट बुद्धीने शत्रूला मदत करून आपल्याच माणसाचे नुकसान करणे. | |
| केळीला नारळी अन घर चंद्रमौळी | |
| अत्यंत दारिद्र्याची अवस्था येणे. | |
| केस उपटल्याने का मढे हलके होते ? | |
| जेथे मोठ्या उपायांची गरज असते तेथे छोट्या उपायांनी काही होत नाही. | |
| केळी खाता हरखले, हिशेब देता चरकले | |
| एखाद्या गोष्टीचा लाभ घेताना गंमत वाटते मात्र पैसे देताना जीव मेटाकुटीस येतो. | |
| कोळसा उगाळावा तितका काळाच | |
| वाईट गोष्टीबाबत जितकी चर्चा करावी तितकीच ती वाईट ठरते. | |
| कोल्हा काकडीला राजी | |
| लहान लहान गोष्टींनी खुश होतात. | |
| कोणाच्या गाई म्हशी आणि कोणाला उठा बशी | |
| चूक एकाची शिक्षा दुसऱ्याला | |
| कोठे इंद्राचा ऐरावत, कोठे श्यामभट्टाची तट्टाणी | |
| महान गोष्टींबरोबर शुल्लक गोष्टींची तुलना करणे. | |
| खऱ्याला मरण नाही | |
| खरे कधीच लपत नाही. | |
| खर्चणार्याचे खर्चते आणि कोठावळ्याचे पोट दुखते | |
| खर्च करणार्याचा खर्च होतो; तो त्याला मान्य ही असतो; परंतु दुसराच एखादा त्याबद्दल कुरकुर करतो. | |
| खाऊ जाणे तो पचवू जाणे | |
| एखादे कृत्य धाडसाने करणारा त्याचे परिणाम भोगण्यास ही समर्थ असतो. | |
| खान तशी माती | |
| आई-वडिलांप्रमाणे त्यांच्या मुलांचे वर्तन असणे. | |
| खायला काळ भुईला भार | |
| निरूपयोगी मनुष्य सर्वांनाच भारभूत होतो | |
| खाई त्याला खवखवे | |
| जो वाईट काम करतो त्याला मनात धास्ती वाटते. | |
| खाऊन माजावे टाकून माजू नये | |
| पैशाचा, संपत्तीचा गैरवापर करू नये. | |
| खोट्याच्या कपाळी गोटा | |
| खोटेपणा वाईट काम करणाऱ्यांचे नुकसान होते. | |
| गरज सरो, वैद्य मरो | |
| एखाद्या माणसाची आपल्याला गरज असेपर्यंत त्याच्याशी संबंध ठेवणे व गरज संपल्यावर ओळखही न दाखवणे. | |
| गळ्यात पडले झुंड हसून केले गोड | |
| गळ्यात पडल्यावर वाईट गोष्टी सुद्धा गोड मानून घ्यावे लागते. | |
| ग ची बाधा झाली | |
| गर्व चढणे | |
| गरजेल तो पडेल काय | |
| केवळ बडबडणार्या माणसाकडून काही घडत नाही. | |
| गरजवंताला अक्कल नसते | |
| गरजेमुळे अडणार्याला दुसऱ्याचे हवे तसे बोलणे व वागणे निमूटपणे सहन करावे लागते. | |
| गर्वाचे घर खाली | |
| गर्विष्ठ माणसाची शेवटी फजितीच होते. | |
| गळ्यातले तुटले ओटीत पडले | |
| नुकसान होता होता टळणे. | |
| गाढवापुढे वाचली गीता, कालचा गोंधळ बरा होता | |
| मुर्खाला कितीही उद्देश केला तरी त्याचा उपयोग नसतो. | |
| गाड्याबरोबर नळ्याची यात्रा | |
| मोठ्यांच्या आश्रयाने लहानांचाही फायदा होणे. | |
| गाढवाला गुळाची चव काय ? | |
| ज्याला एखाद्या गोष्टीचा गंध नाही त्याला त्या गोष्टीचे महत्त्व कळू शकत नाही. | |
| गाढवाच्या पाठीवर गोणी | |
| एखाद्या गोष्टीची फक्त अनुकूलता असून उपयोग नाही तर तिचा फायदा घेता यायला हवा. | |
| गाव करी ते राव न करी | |
| श्रीमंत व्यक्ती स्वतःच्या बळावर जे करू शकणार नाही ते सामान्य माणसे एकीच्या बळावर करू शकतात. | |
| गाढवाचा गोंधळ व लाथांचा सुकाळ | |
| मूर्खांच्या गोंधळात एकमेकांवर दोषारोप करण्यात वेळ जातो. | |
| गाय व्याली, शिंगी झाली | |
| अघटित घटना घडणे. | |
| जळे आणि हनुमान बेंबी चोळे | |
| दुसऱ्याचे नुकसान करून नामानिराळे राहणे | |
| गोगलगाय न पोटात पाय | |
| बाहेरून दिसणारी पण मनात कपट असणारी व गुप्तपणे खोडसाळपणा करणारी व्यक्ती. | |
| घरचे झाले थोडे व्याह्याने धाडले घोडे | |
| अडचणीत आणखी भर पडण्याची घटना घडणे | |
| घर फिरले म्हणजे घराचे वासेही फिरतात | |
| एखाद्यावर प्रतिकूल परिस्थिती आली म्हणजे सारे त्याच्याशी वाईटपणे वागू लागतात. | |
| घरोघरी मातीच्या चुली | |
| एखाद्या बाबतीत सामान्यता सर्वत्र सारखीच परिस्थिती असणे. | |
| घर ना दार देवळी बिर्हाड | |
| शिरावर कोणती जबाबदारी नसलेली व्यक्ती. | |
| घडाई परिस मडाई जास्त | |
| मुख्य गोष्टीपेक्षा आनुषंगिक गोष्टींचा खर्च जास्त असणे. | |
| घेता दिवाळी देता शिमगा | |
| घ्यायला आनंद वाटतो तर द्यायच्या वेळी मात्र बोंबाबोंब. | |
| घोडे कमावते आणि गाढव खाते | |
| एकाने कष्ट करावे व निरुपयोगी व्यक्तीने त्याचा गैर फायदा घ्यावा. | |
| चवलीची कोंबडी आणि पावली फळणावळ | |
| मुख्य गोष्टीपेक्षा देखभालीचा खर्च जास्त असणे. | |
| चार दिवस सासूचे चार दिवस सुनेचे | |
| प्रत्येकाला अनुकूल परिस्थिती येतेच. | |
| चार जणांची आई बाजेवर जीव जाई | |
| जबाबदारी अनेकांची असेल तर काळजी कोणीच घेत नाही. | |
| चिंता परा येई घरा | |
| दुसऱ्याचे वाईट चिंतित राहिले, कि ते आपल्यावरच उलटते. | |
| चिखलात दगड टाकला आणि अंगावर शिंतोडे घेतला | |
| स्वतःच्याच हाताने स्वतःची बदनामी करून घेणे. | |
| चुलीपुढे शिपाई अन घराबाहेर भागुबाई | |
| घरात तेवढा शूर पणाचा आव आणायचा पण बाहेर मात्र घाबरायचे. | |
| चोर सोडून संन्याशालाच फाशी | |
| खर्या अपराधी माणसाला सोडून निरपराधी माणसाला शिक्षा देणे. | |
| चोराच्या उलट्या बोंबा | |
| स्वतः गुन्हा करून दुसऱ्याला दोष देणे. | |
| चोरावर मोर | |
| एखाद्या गोष्टीच्या बाबतीत दुसऱ्याला वरचढ ठरणे. | |
| चोरांच्या हातची लंगोटी | |
| ज्याच्याकडून काही मिळण्याची आशा नसते त्याच्याकडून थोडेतरी मिळणे. | |
| चोराची पावली चोराला ठाऊक | |
| वाईट माणसांनाच वाईट माणसांच्या युक्त्या कळतात. | |
| चोराच्या मनात चांदणे | |
| वाईट कृत्य करणाऱ्याला आपले कृत्य उघडकीला येईल की काय अशी सतत भीती असते. | |
| चालत्या गाडीला खीळ | |
| व्यवस्थित चालणाऱ्या कार्यात अडचण निर्माण होणे. | |
| जशी देणावळ तशी धुणावळ | |
| मिळणाऱ्या मोबदल्याच्या प्रमाणातच काम करणे. | |
| जलात राहून माशाशी वैर करू नये | |
| ज्यांच्या सहवासात रहावे लागते त्यांच्याशी शत्रुत्व करू नये. | |
| जळतं घर भाड्याने कोण घेणार ? | |
| नुकसान करणाऱ्या गोष्टीचा स्वीकार कोण करणार ? बुडत्या बँकेचा पुढल्या तारखेचा चेक कोण घेणार ? | |
| जानवे घातल्याने ब्राह्मण होत नाही | |
| बाह्य देखाव्याने माणूस ज्ञान होत नाही. | |
| जावे त्यांच्या वंशा तेव्हा कळे | |
| दुसऱ्याच्या स्थितीत आपण जावे तेव्हा तिचे खरे ज्ञान होते. | |
| जीत्या हुळहुळे आणि मेल्या कानवले | |
| जितेपणी दुर्लक्ष करायचे व मेल्यावर कोड कौतुक करायचे. | |
| जेवेण तर तुपाशी नाही तर उपाशी | |
| अतिशय दुराग्रहाचे किंवा हटवादीपणाची वागणे. | |
| जे न देखे रवि ते देखे कवी | |
| जे सूर्य पाहू शकत नाहीत ते कवी कल्पनेने पाहू शकतो. | |
| जो गुळाने मरतो त्याला विष कशास ? | |
| जिथे गोड बोलून काम होते तिथे जालीम उपायांची गरज नसते. | |
| ज्या गावच्या बोरी, त्या गावच्या बाभळी | |
| एकच स्वभाव असलेल्या माणसाने एकमेकांची वर्मी काढण्यात अर्थ नसतो, कारण एकाच ठिकाणची असल्याने ते एकमेकांना पुरेपूर ओळखतात. | |
| ज्याच्या हाती ससा, तो पारधी | |
| ज्याच्या हाती वस्तू असते त्याला त्याविषयीचे कर्तृत्व बहाल केले जाते, म्हणजेच एकाचे कर्तृत्व; पण ते दुसऱ्याच्या नावे गाजणे. | |
| ज्याचे करावे बरे तो म्हणतो माझेच खरे | |
| एखाद्याचे भले करायला जावे तर तो त्या गोष्टीस विरोधच करतो व आपलाच हेका चालवण्याचा प्रयत्न करतो. | |
| ज्याची खावी पोळी त्याची वाजवावी टाळी | |
| जो आपल्यावर उपकार करतो त्या उपकारकर्त्याचे स्मरण करून गुणगान गावे. | |
| झाकली मूठ सव्वा लाखाची | |
| व्यंग नेहमी झाकून ठेवावे. | |
| टाकीचे घाव सोसल्यावाचुन देवपण येत नाही | |
| कष्ट सोसल्याशिवाय मोठेपण येत नाही. | |
| डोळ्यात केर आणि कानात फुंकर | |
| रोग एका जागी व उपचार दुसऱ्या जागी. | |
| ढवळ्या शेजारी पवळ्या बांधला वाण नाही, पण गुण लागला | |
| वाईट गुण मात्र लवकर लागतात म्हणजेच वाईट माणसांच्या संगतीने चांगला माणूसही बिघडतो. | |
| ढेकणाच्या संगे हिरा जो भंगला, कुसंगे नाडला साधू तैसा | |
| वाईट संगतीचे वाईटच परिणाम असतात. | |
| तळे राखील तो पाणी चाखील | |
| ज्याच्याकडे एखादे काम सोपवले तो त्याच्यापासून काहीतरी फायदा करून घेणारच. | |
| तरण्याचे कोळसे, म्हातार्याला बाळसे | |
| अगदी उलट गुणधर्म दिसणे. | |
| तट्टाला टूमणी, तेजीला इशारत | |
| जी गोष्ट मूर्खाला शिक्षेने ही समजत नाही ती शहाण्याला मात्र फक्त इशाऱ्याने समजते. | |
| ताकापुरते रामायण | |
| एखाद्याकडून आपले काम होईपर्यंत त्याची खुशामत करणे. | |
| तीन दगडात त्रिभुवन आठवते | |
| संसार केल्यावरच खरे मर्म कळते. | |
| तीथ आहे तर भट नाही, भट आहे तर तीथ नाही | |
| चणे आहेत तर दात नाहीत, दात आहेत तर चणे नाहीत. | |
| तुकारामबुवांची मेख | |
| न सुटणारी गोष्ट | |
| तू दळ माझे आणि मी दळण गावच्या पाटलाचे | |
| आपले काम दुसऱ्याने करावे आपण मात्र लष्कराच्या भाकरी भाजाव्यात. | |
| तेल गेले तूप गेले हाती धुपाटणे आले | |
| मूर्खपणामुळे एकही गोष्ट साध्य न होणे. | |
| तेरड्याचा रंग तीन दिवस | |
| कोणत्याही गोष्टीचा ताजेपणा किंवा नवलाई अगदी कमी वेळ टिकते. | |
| तोंड दाबून बुक्क्यांचा मार | |
| एखाद्याला विनाकारण शिक्षा करणे आणि त्याला त्याबद्दल तक्रार करण्याचा मार्ग मोकळा न ठेवणे. | |
| तोबऱ्याला पुढे, लगामाला पाठीमागे | |
| खायला पुढे कामाला मागे. | |
| थेंबे थेंबे तळे साचे | |
| दिसण्यात शुल्लक वाटणाऱ्या वस्तूंचा संग्रह कालांतराने मोठा संचय होतो. | |
| थोरा घराचे श्वान सर्व ही देती मान | |
| मोठ्या माणसांचा आश्रय हा प्रभावी ठरतो, असा आश्रय घेणाऱ्याला कारण नसताना मोठेपणा दिला जातो. | |
| दगडापेक्षा वीट मऊ | |
| मोठ्या संकटापेक्षा लहान संकट कमी नुकसानकारक ठरतो. | |
| दस की लकडी एक्का बोजा | |
| प्रत्येकाने थोडा हातभार लावल्यास सर्वांच्या सहकार्याने मोठे काम पूर्ण होते. | |
| दहा गेले, पाच उरले | |
| आयुष्य कमी उरणे. | |
| दात कोरून पोट भरत नाही | |
| मोठ्या व्यवहारात थोडीशी काटकसर करून काही उपयोग होत नाही. | |
| दाम करी काम, बिवी करी सलाम | |
| पैसे खर्च केले की कोणतेही काम होते. | |
| दाखविलं सोनं हसे मुल तान्हं | |
| पैशाचा मोह प्रत्येकालाच असतो. पैशाची लालूच दाखविताच कामे पटकन होतात. | |
| दात आहेत तर चणे नाहीत, चणे आहेत तर दात नाहीत | |
| एक गोष्ट अनुकूल असली तरी तिच्या जोडीला आवश्यक ती गोष्ट अनुकूलन नसणे. | |
| दिल चंगा तो कथौटी में गंगा | |
| आपले अंतःकरण पवित्र असल्यास पवित्र गंगा आपल्याजवळ असते. | |
| दिव्याखाली अंधार | |
| मोठ्या माणसातदेखील दोष असतो. | |
| दिल्ली तो बहुत दूर है | |
| झालेल्या कामाचा मानाने खूप साध्य करावयाचे बाकी असणे. | |
| दिवस बुडाला मजूर उडाला | |
| रोजाने व मोलाने काम करणारा थोडेच स्वतःचं समजून काम करणार ? त्याची कामाची वेळ संपते ना संपते तोच तो निघून जाणार. | |
| दुरून डोंगर साजरेदुरून डोंगर साजरे | |
| कोणतीही गोष्ट लांबून चांगली दिसते; परंतु जवळ गेल्यावर तिचे खरे स्वरूप कळते. | |
| दुभत्या गाईच्या लाथा गोड | |
| ज्याच्या पासून काही लाभ होतो, त्याचा त्रासदेखील मनुष्य सहन करतो. | |
| दुसऱ्याच्या डोळ्यातील कुसळ दिसते; पण आपल्या डोळ्यातले मुसळ दिसत नाही | |
| दुसऱ्याचा लहानसा दोष आपल्याला दिसतो; पण स्वार्थामुळे स्वतःच्या मोठ्या दोषांकडे लक्ष जात नाही. | |
| दुधाने तोंड भाजले, कि ताकपण फुंकून प्यावे लागते | |
| एखाद्या बाबतीत अद्दल घडली, की प्रत्येक बाबतीत सावधगिरी बाळगणे. | |
| देश तसा वेश | |
| परिस्थितीप्रमाणे बदलणारे वर्तन. | |
| देव तारी त्याला कोण मारी ? | |
| देवाची कृपा असल्यास आपले कोणीही वाईट करू शकत नाही. | |
| देखल्या देवा दंडवत | |
| सहज दिसले म्हणून चौकशी करणे. | |
| देणे कुसळांचे घेणे मुसळाचे | |
| पैसे कमी आणि काम जास्त. | |
| देवा दंडवत | |
| एखादी व्यक्ती सहज भेटली तर खुशाली विचारणे. | |
| दैव देते आणि कर्म नेते | |
| नशिबामुळे उत्कर्ष होतो; पण स्वतःच्या कृत्यामुळे नुकसान होते. | |
| दैव नाही लल्लाटी, पाऊस पडतो शेताच्या काठी | |
| नशिबात नसल्यास जवळ आलेली संधी सुद्धा दूर जाते. | |
| दैव आले द्यायला अन् पदर नाही घ्यायला | |
| नशिबाने मिळणे परंतु घेता न येणे | |
| दैव उपाशी राही आणि उद्योग पोटभर खाई | |
| नशिबावर अवलंबून असणारे उपाशी राहतात तर उद्योगी पोटभर खातात. | |
| दोन मांडवांचा वऱ्हाडी उपाशी | |
| दोन गोष्टीवर अवलंबून असणाऱ्या चे काम होत नाही. | |
| दृष्टीआड सृष्टी | |
| आपल्या मागे जे चालते त्याकडे दुर्लक्ष करावे. | |
| धर्म करता कर्म उभे राहते | |
| एखादी चांगली गोष्ट करत असताना पुष्कळदा त्यातून नको ती निष्पत्ती होते. | |
| धनगराची कुत्रे लेंड्यापाशी ना मेंढ्यापाशी | |
| कोणत्याच कामाचे नसणे. | |
| धार्याला (मोरीला) बोळा व दरवाजा मोकळा | |
| छोट्या गोष्टीची काळजी घेणे परंतु मोठी कडे दुर्लक्ष करणे. | |
| धिटाई खाई मिठाई, गरीब खाई गचांड्या | |
| गुंड व आडदांड लोकांचे काम होते तर गरिबांना यातायात करावी लागते. | |
| नकटीच्या लग्नाला सतराशे विघ्ने | |
| दोषयुक्त काम करणाऱ्यांच्या मार्गात एक सारख्या अनेक अडचणी येतात | |
| नदीचे मूळ आणि ऋषीचे कूळ पाहू नये | |
| नदीचे उगमस्थान व ऋषीचे कूळ पाहू नये कारण त्यात काहीतरी दोष असतोच. | |
| न कर्त्याचा वार शनिवार | |
| एखादे काम मनातून करायचे नसते तो कोणत्या तरी सबबीवर ते टाळतो. | |
| नऊ दिवस | |
| कोणत्याही गोष्टीचा नवीन पणा काही काळ टिकून कालांतराने तिचे महत्त्व नाहीसे होणे. | |
| नळी फुंकली सोनारे इकडून तिकडे गेले वारे | |
| केलेला उपदेश निष्फळ ठरणे. पालथ्या घड्यावर पाणी ओतण्याचा प्रकार. उपदेशाचा शून्य परिणाम होणे. | |
| नागेश्वराला नागवून सोमेश्वराला वात लावणे | |
| एकाचे लुटून दुसऱ्याला दान करणे | |
| नाकापेक्षा मोती जड | |
| मालकापेक्षा नोकर शिरजोर असणे | |
| नाव सोनुबाई हाती कथलाचा वाळा | |
| नाव मोठे लक्षण खोटे. | |
| नाव देवाचे आणि गाव पुजाऱ्याचे | |
| देवाच्या नावाने स्वार्थ जपणे. | |
| नाक दाबले, की तोंड उघडते | |
| एखाद्या माणसाचे वर्म जाणून त्यावर योग्य दिशेने दबाव आणला, की चुटकीसरशी ताबडतोब हवे ते काम करून घेता येते. | |